Roopkund Lake – Amazing Mystry of the Unidentified Skeletons

(Roopkund Lake) रूपकुंड को रहस्यमयी झील या कंकाल झील (Mystery Lake or Lake of Skeletons) के नाम से भी जाना जाता है।

यह झील (Roopkund Lake) भारत के उत्तराखंड राज्य में 5,020 मीटर (16,470 फीट) की ऊंचाई (Roopkund elevation) पर त्रिशूल पर्वत पर एक खड़ी ढलान के तल पर स्थित है।

ग्लेशियर के पिघलने से बनी इस झील (Roopkund Lake) का क्षेत्र 1000 से 1500 वर्ग मीटर और गहराई लगभग 3 मीटर है।

रूपकुंड (Roopkund Lake) को झील के किनारे पाए गए सैकड़ों प्राचीन मानव कंकालों के लिए जाना जाता है।

रूपकुंड (Roopkund Lake) में 600 से 800 लोगों के अवशेष मिले हैं।

बर्फ पिघलने पर झील (Frozen Lake full of skeletons) के साफ पानी में कंकाल दिखाई देते हैं।

कंकालों के साथ, लकड़ी की कलाकृतियाँ, लोहे के भाले, चमड़े की चप्पलें, और अंगूठियाँ भी पायी गयी थीं।

इन्हीं मानव अवशेषों के कारण इस झील को कंकाल झील (Skeleton Lake India) कहा जाता है।

आधी सदी से अधिक समय तक मानवविज्ञानी और वैज्ञानिकों ने अवशेषों का अध्ययन किया और उनके सामने कई हैरान करने वाले सवाल थे।

ये लोग कौन थे? वे कब मरे? उनकी मृत्यु कैसे हुई? वे कहां से आए थे?

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कंकालों के बारे में अनुमान (Guess about skeletons)

इन कंकालों के बारे में कई धारणाऐं प्रचलित हैं।

सबसे पहले 1942 में नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान के वन रेंजर हरि किशन मधवाल ने इन कंकालों को रूपकुंड (Lake of Roopkund) में देखा था।

उस समय ब्रिटिश अधिकारियों को लगा कि यह कंकाल छिपकर घुसपैठ कर रहे जापानी सैनिकों के थे।

लेकिन जांच करने पर पाया गया कि यह कंकाल जापानी सैनिकों के नहीं हो सकते क्योंकि यह बहुत पुराने थे।

Roopkund Lake Skeletons

कुछ का मानना है कि यह कंकाल 9वीं शताब्दी में अचानक हुए हिमस्खलन के कारण मरे हुए लोगों के हैं।

स्थानीय किंवदंती के अनुसार कन्नौज के राजा जसधवल, अपनी गर्भवती पत्नी रानी बलम्पा, नौकरों, एक नृत्य मंडली और अन्य लोगों के साथ नंदा देवी मंदिर की तीर्थ यात्रा पर गए थे।

यात्रा में इस दल को बड़े-बड़े ओलों के साथ आये एक बर्फीले तूफान का सामना करना पड़ा था।

जिससे रूपकुंड झील (Roopkund lake skeletons) के पास उन सभी की मृत्यु हो गयी थी।

इस क्षेत्र में एक लोक गीत प्रचलित है।

जिसमें वर्णन है कि कैसे नंदा देवी ने “लोहे के समान कठोर” ओलावृष्टि की।

जिससे झील (Lake of skeletons India) के रास्ते से गुजरते हुए लोगों की जान चली गयी।

भारत का दूसरा सबसे ऊँचा पर्वत, नंदा देवी, एक देवी के रूप में पूजनीय है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि इस झील (The lake of skeletons) पर पाए गए कुछ कंकाल उन तीर्थयात्रियों के होंगे जो प्राकृतिक आपदा के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए होंगे।

कुछ लोगों का मत था कि यह अवशेष कश्मीर के जनरल जोरावर सिंह और उनके सैनिकों के थे।

जो 1841 में तिब्बत की लड़ाई से लौटते समय हिमालय क्षेत्र में कहीं खो गए थे।

कुछ का अनुमान था कि यह एक “कब्रिस्तान” हो सकता है जहां महामारी के पीड़ितों को दफनाया गया हो।

मृत्यु का कारण और समय (Cause and time of death)

1950 के दशक में भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण ने इन कंकालों का अध्ययन किया।

आज भी इनमें से कुछ को भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण संग्रहालय, देहरादून में देखा जा सकता है।

कंकालों (Roopkund skeletons) के अध्ययन से पता चला कि इन सभी की मृत्यु सिर पर गोल वस्तुओं के कारण लगी चोटों के कारण हुई थी।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में हड्डियों की रेडियोकार्बन डेटिंग से मृत्यु का समय 850 CE ±30 वर्ष निर्धारित किया गया था।

इससे शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि यह सभी अचानक हुई ओलावृष्टि में फंस गए होंगे।

The Lake of Skeletons

इसी तरह का वर्णन स्थानीय किंवदंतियों और लोक गीतों में भी किया गया है।

2003 में नेशनल ज्योग्राफिक की एक टीम ने रूपकुंड (Roop Kund Lake) से लगभग 30 कंकाल (Roopkund lake bodies) निकाले थे जिनकी हड्डियों के साथ मांस जुड़ा हुआ था।

काफी वर्षों बाद 38 कंकालों (Frozen skeleton) की जीनोम विश्लेषण के साथ रेडियोकार्बन डेटिंग करने पर पता चला कि यह अवशेष तीन अलग-अलग समूहों से संबंधित हैं।

जिनकी मृत्यु दो अलग अलग घटनाओं (लगभग 800 CE और 1800 CE क्रमशः) में हुई थी।

(Skeleton lake mystery solved)

आनुवंशिक अध्ययन में किसी भी प्राचीन रोगज़नक़ जीवाणु मिलने का भी कोई सबूत नहीं मिला।

जिससे यह अनुमान लगाया जा सके कि शायद इनकी मृत्यु किसी रोग के कारण हुई हो।

प्रश्न यह है कि लोग उस क्षेत्र में यात्रा क्यों कर रहे थे।

झील (Roopkund Lake) के पास से जाने वाले रास्ते का उपयोग लोग तीर्थयात्रा पर जाने के लिए करते थे।

पहले यह कहा गया था कि इस क्षेत्र में 19 वीं शताब्दी के अंत से पहले तीर्थयात्रा करने का कोई प्रमाण नहीं था।

लेकिन स्थानीय मंदिरों के शिलालेख 8 वीं और 10 वीं शताब्दी के बीच के हैं।

इससे अनुमान लगता है कि संभवतः पहले भी लोग इस मार्ग का उपयोग तीर्थयात्रा के लिए करते होंगे।

यह नर कंकाल किसके हैं (Whose skeletons are these)

जिन 38 कंकालों की रेडियो कार्बन डेटिंग की गयी थी, उनमें से 23 व्यक्तियों का समूह विशिष्ट दक्षिण एशियाई वंश का था।

जिनकी मृत्यु लगभग 800 CE के आसपास हुई थी।

एक व्यक्ति दक्षिण पूर्व एशियाई वंश का और 14 व्यक्तियों का समूह पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र से सम्बन्धित था।

इन सभी की मृत्यु लगभग 1800 CE के आसपास हुई थी।

Roopkund Lake

इन सब बातों से यह पता चला कि इन सभी की मृत्यु एक ही विनाशकारी घटना में नहीं हुई थी।

लेकिन पूर्वी भूमध्यसागर के लोग भारत के सबसे ऊंचे पहाड़ों की एक दूरस्थ झील (Roopkund Lake) पर कैसे पहुंचे?

ऐसा लगता नहीं है कि यूरोप के लोग हिंदू तीर्थयात्रा में भाग लेने के लिए रूपकुंड (Skeleton lake Roopkund) आए होंगे।

तो क्या यह दूरस्थ पूर्वी भूमध्यसागरीय वंश के लोगों की आनुवंशिक रूप से पृथक आबादी थी जो कई पीढ़ियों से इस क्षेत्र में रह रही थी?

वैज्ञानिकों का कहना है कि वे अभी भी इसका जवाब खोज रहे हैं।

ऐसी आशंका है कि अगर इन कंकालों के संरक्षण के लिए कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में यह कंकाल (Indian skeleton) धीरे-धीरे गायब हो सकते हैं।

अक्सर क्षेत्र में आने वाले पर्यटक, ट्रेकर्स और जिज्ञासु शोधकर्ता इन अस्थियों को अपने साथ ले जाते हैं। जिला प्रशासन ने इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिए कदम उठाये हैं।

सरकार इन कंकालों (Roopkund lake bones) की रक्षा के लिए इस क्षेत्र को पर्यावरण-पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के प्रयास कर रही है।

रूपकुंड (Roopkund Lake) के पर्यटन के बारे में अधिक जानने के लिए आप उत्तरांचल सर्कार की वेबसाइट देख सकते हैं – https://www.euttaranchal.com/tourism/roopkund-lake.php

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