Top 10 Deadliest And Worst Famine in the History

Famine (अकाल) क्या है? (What is Famine?) (Meaning of famine) किसी क्षेत्र या देश की आबादी में युद्ध, मुद्रास्फीति, फसल खराब होने, जनसंख्या असंतुलन या सरकारी नीतियों सहित कई कारणों से भोजन की कमी को अकाल कहते हैं। इसके परिणामस्वरूप कुपोषण, भुखमरी, महामारी और मृत्यु दर में बढ़ोतरी होती है।

कई अकाल सूखा, बाढ़, बेमौसम ठंड, आंधी, कीड़ों कीटों का प्रकोप और पौधों की बीमारियाँ जैसे प्राकृतिक कारणों (causes of famine) से उत्पन्न होते हैं। अकाल का सबसे आम मानवीय कारण (what causes famine) युद्ध है। युद्ध में रणनीति के तहत फसलों और खाद्य आपूर्ति को नष्ट करने के अलावा घेराबंदी, नाकाबंदी, परिवहन मार्गों और वाहनों के विनाश के माध्यम से भोजन के वितरण को बाधित करना, अकाल का कारण बनता है।

इस लेख में मरने वालों की संख्या के आधार पर दस प्रमुख अकालों (list of famines) (famine list) की सूची दी गयी है।

आभार:- https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_natural_disasters_by_death_toll#Ten_deadliest_famines

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10. 1876-1878 का भीषण अकाल (Severe Famine of 1876-1878)

ब्रिटिश काल में यह अकाल (worst famines) 1876 में एक भीषण सूखे के बाद शुरू हुआ।

जिसके कारण दक्कन के पठार के इलाके की फसलें खराब हो गयीं।

इससे दो साल की अवधि में ब्रिटिश राज की मद्रास और बॉम्बे प्रेसीडेंसी और साथ में मैसूर और हैदराबाद की रियासतें प्रभावित हुईं।

इस अकाल ने 670,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को प्रभावित किया और बड़ी आबादी को संकट में डाला।

अनुमानतः इस त्रासदी में 5.6 मिलियन से लेकर 9.6 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई।

famine
Severe Famine of 1876-1878

अकाल के दौरान भी ब्रिटिश सरकार द्वारा अनाज का नियमित निर्यात जारी रहा।

लॉर्ड रॉबर्ट बुलवर-लिटन ने इंग्लैंड को रिकॉर्ड 320,000 टन गेहूं का निर्यात किया ।

जिसने इस क्षेत्र की स्थिति और अधिक खराब हो गयी।

जनवरी 1877 में, भारत सरकार के अकाल कमीश्नर सर रिचर्ड टेम्पल ने मद्रास और बॉम्बे के राहत शिविरों में मजदूरी को घटा दिया।

एक आदमी को बिना छांव या आराम के पूरे दिन मजदूरी करने पर 450 ग्राम अनाज और एक आना दिया जाता था।

कम मजदूरी देने के पीछे तर्क था की अधिक भुगतान अकाल पीड़ित आबादी के बीच निर्भरता पैदा कर सकता है।

1877 की शुरुआत में, सर रिचर्ड टेम्पल ने कहा कि उसने “अकाल को नियंत्रण में” रखा है।

लेकिन तब तक लाखों लोग मर चुके थे।

अकाल (famine) के कारण राज्य की जनसंख्या में 1871 की जनगणना की तुलना में 874,000 की कमी आई।

अकाल के बाद, बड़ी संख्या में दक्षिण भारत के किसान ब्रिटिश प्लांटेशन्स में मजदूर बन गए।

आधुनिक जनसांख्यिकीय अनुमान के अनुसार इस अकाल में लगभग 8.2 मिलियन लोगों की मौत हुई थी।

9. 1932-1933 का सोवियत संघ अकाल (Soviet Famine of 1932-1933)

जोसफ स्टालिन द्वारा शासित सोवियत संघ ने 1932 में एक ऐसा अकाल (famine) देखा जिसने यूक्रेन, कजाकिस्तान, उत्तरी काकेशस और वोल्गा क्षेत्रों में लाखों लोगों की जान ले ली।

रिकॉर्ड की कमी के कारण मौतों का सही आकलन मुश्किल है।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भुखमरी के कारण इस अकाल में 7 से 10 मिलियन लोगों की मौत हुई थी।

लेकिन कुछ इतिहासकार इसे 5 से 8 मिलियन के बीच बताते हैं।

यह अकाल (famine) कई कारणों से हुआ।

famine in history
Soviet Famine of 1932-1933

जैसे प्राकृतिक आपदाओं (biggest disasters) के कारण कम फसल, सरकारी नीतियों के कारण औद्योगीकरण और शहरीकरण को बढ़ावा और उसी समय सोवियत संघ द्वारा अनाज का अधिक निर्यात।

जोसफ स्टालिन ने औद्योगीकरण पर जोर दिया और कृषि वर्ग को दबाया।

अनाज उत्पादक क्षेत्रों में अकाल का प्रकोप अधिक था क्योंकि स्टालिन ने कृषि के बजाय औद्योगीकरण को वरीयता दी।

कुलक जो की धनी किसान थे, उन्हें स्टालिन शासन में विशेष संकट का सामना करना पड़ा।

लगभग दस लाख कुलक घरों को नष्ट कर दिया गया था।

उनकी संपत्ति जब्त की गयी, उन्हें कैद किया गया, मारा गया और निर्वासित कर दिया गया था।

तत्कालीन सरकार ने 1932-1933 के इस अकाल (famine) को आधिकारिक रूप से नकार दिया था।

इस मुद्दे पर बात करना “सोवियत-विरोधी प्रचार” के रूप में वर्गीकृत था।

अकाल (famous famines) से पहले आबादी का लगभग 60% कज़ाख थे, लेकिन अकाल के बाद उनकी आबादी लगभग 38% रह गयी।

8. 1630-1632 का दक्कन अकाल (Deccan Famine of 1630-1632)

मुग़ल काल में 1630 से 1632 के बीच आये अकाल (famine) ने दक्कन के पठार, खांडेस और गुजरात के इलाकों को प्रभावित किया था।

यह अकाल मुगल साम्राज्य में होने वाला सबसे गंभीर और भारत के इतिहास में सबसे विनाशकारी अकालों में से एक था। (worst famine in history)

लगातार तीन फसलें प्राकृतिक आपदाओं के कारण खराब हो गयीं।

जिसके कारण इन इलाकों में भुखमरी और बीमारी फैल गयी।

अक्टूबर 1631 तक केवल दस महीनों में केवल गुजरात में 30 लाख लोग मारे गए।

एक रिपोर्ट के अनुसार 1631 के अंत तक पूरे इलाके में लगभग 7.4 मिलियन के अधिक लोगों की मृत्यु हुई।

famines in history
Deccan Famine of 1630-1632

अब्दुल-हामिद लाहौरी अपनी किताब बादशाह-नाम में लिखते हैं कि बारिश ना होने के कारण इंसान की कीमत एक रोटी के टुकड़े से भी कम हो गयी थी।

लोग बकरे की जगह कुत्ते खाने लगे थे।

रास्तों पर भूख से मरे हुए लोग पड़े रहते थे।

वो भूमि जो अपनी उर्वरता के लिए प्रसिद्ध थी, सूखा बंजर बन चुकी थी।

कुछ लोग यह भी दावा करते हैं कि शाहजहाँ की सेना ने बरहानपुर में डेरा डाला हुआ था। यह अकाल (famine) की स्थिति अधिक खराब होने के कारणों में से एक थी।

लेकिन मुगलिया इतिहासकारों का कहना है कि शाहजहाँ ने पीड़ितों के भोजन के लिए लंगर का इंतजाम किया।

शाहजहाँ पांच महीने तक बुरहानपुर में रहे।

हर सोमवार को पांच हज़ार रूपए गरीबों में बांटे जाते थे।

इस तरह बीस हफ़्तों में एक लाख रूपए की मदद की गयी।

7. 1315-1317 का भीषण यूरोपीय अकाल (European Famine of 1315-1317)

14वीं शताब्दी की शुरुआत में यह यूरोप का पहला बड़ा अकाल (famine) था जिसने अधिकांश यूरोप और रूस से लेकर इटली तक को प्रभावित किया।

इस अकाल में फसल खराब होने के साथ साथ मवेशियों की बीमारी भी फैली।

जिससे 80 प्रतिशत दुधारू पशु और भेड़ बकरियां मर गए।

1315 में यूरोप के अधिकांश हिस्सों में असामान्य रूप से भारी बारिश शुरू हुई।

यह बरसात महीनों तक चली जिससे मौसम ठंडा बना रहा।

जिसके कारण पानी भर गया, फसल खराब हो गयी, खाने के लिए अन्न नहीं बचा, जानवरों को चारा नहीं मिला और वे बीमार होकर मरने लगे।

अनाज और अन्य खाने पीने की चीजों के दाम कई गुना बढ़ गए।

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European Famine of 1315-1317

सिर्फ संपन्न, कुलीन व्यक्तियों, धनी व्यापारियों और चर्च के लिए ही यह उपलब्ध था।

आम जनता ने जंगली जड़ें, घास और छाल खाना शुरू कर दिया।

ब्रिस्टल शहर के दस्तावेजों के अनुसार 1315 में वहाँ लोगों ने घोड़े और कुत्ते खाने शुरू कर दिए।

कई जगह तो मनुष्यों को खाने के उदाहरण भी सामने आये हैं।

1317 में अकाल (famine) अपने चरम पर था।

लोग निमोनिया, ब्रोंकाइटिस और तपेदिक जैसी बीमारियों से कमजोर होकर मरने लगे थे।

तब तक लोग अनाज के बीजों को भी खा चुके थे जिसके कारण मौसम ठीक होने के बाद भी इस अकाल का प्रभाव (famine disaster) 1922 तक रहा।

इस अकाल में सामूहिक मृत्यु, रोग, जघन्य अपराध, नरभक्षण और शिशुहत्या अपने चरम स्तर पर थे।

इस अकाल में यूरोप के कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या का दसवाँ हिस्सा मर गया।

एक अनुमान के अनुसार इस भयानक अकाल (worst famine in history) में 7.5 से लेकर 10 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई।

6. 1769–1773 का बंगाल अकाल (Bengal Famine of 1769-1773)

ब्रिटिश राज में मौसम और ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियों के कारण 1769–1773 के इस अकाल (worst natural disasters ever) ने बिहार से लेकर पश्चिमी बंगाल क्षेत्र तक भारत के निचले गंगा के मैदान को प्रभावित किया।

अकाल (famine) में उस समय की बंगाल की एक तिहाई आबादी यानि लगभग 1.2 मिलियन लोगों की मौत हुई।

1769 में अकाल की शुरुआत खराब मानसून के कारण सूखा और लगातार दो चावल की फसलें खराब होने से हुई।

युद्ध से हुई तबाही और 1765 के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी की शोषणकारी कर राजस्व नीतियों ने ग्रामीण आबादी के आर्थिक संसाधनों को पंगु बना दिया।

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Bengal Famine of 1769-1773

अकाल के प्रभाव का ईस्ट इंडिया कंपनी पर कोई असर नहीं था।

कंपनी के पास अनाज की कमी से निपटने के लिए कोई योजना नहीं थी और कार्यवाही तभी की गई जब अकाल ने टैक्स देने वाले व्यापारिक वर्गों को प्रभावित किया।

अकाल के कारण टैक्स में कमी आई।

(worst famines in history)

जिसके कारण 1771 के बाद टैक्स वसूली हिंसक हो गयी।

1770 की शुरुआत में भुखमरी फैलने लगी ।

इस साल के मध्य तक बड़े पैमाने पर भुखमरी से मौतें होने लगीं।

इसी साल मुर्शिदाबाद में चेचक महामारी फैल गई जिसके कारण 63,000 निवासियों की मौत हो गई।

अकाल (great famines in history) के परिणामस्वरूप बड़े क्षेत्र निर्जन हो गए क्योंकि बचे हुए लोग भोजन की तलाश में वहां से चले गए।

1772 के बाद से, डाकुओं और ठगों के गिरोह बंगाल में हावी हो गए जिन पर 1790 के दशक तक काबू पाया गया।

स्थानीय लोगों के प्रति ईस्ट इंडिया कंपनी की उदासीनता और निष्ठुरता के कारण 1.2 मिलियन लोग इस अकाल (famine) की भेंट चढ़ गए।

5 & 4. 1783–1793 के चालीसा और दोजी बारा अकाल (Chalisa and Doji Bara Famine)

भारतीय उपमहाद्वीप में 1783-1793 के बीच दो बार अल नीनो घटना के कारण सूखे की स्थिति बनी जिसके कारण भयंकर अकाल (famine) पड़ा।

अल नीनो शब्द मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह (या समुद्र की सतह के औसत तापमान से ऊपर) के गर्म होने को दर्शाता है।

अल नीनो के कारण गंभीर सूखा, खाद्य की कमी, बाढ़, बारिश और तापमान में वृद्धि होती है।

जिसके कारण बीमारी का प्रकोप, कुपोषण, गर्मी के कारण चक्कर और सांस की बीमारियां शामिल हैं।

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Chalisa and Doji Bara Famine

ऐसा पहली बार ऐसा 1783-1784 में हुआ।

इसको चालीसा अकाल (world’s worst disasters) कहते हैं क्योंकि यह विक्रम संवत के कैलेंडर वर्ष 1840 में हुआ था।

अकाल (famine) ने उत्तर भारत के कई हिस्सों, विशेष रूप से दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों, वर्तमान उत्तर प्रदेश, पूर्वी पंजाब, राजपूताना और कश्मीर को प्रभावित किया।

उस समय इन सभी पर विभिन्न भारतीय शासकों का शासन था।

इस अकाल ने भारत के कई क्षेत्रों को नष्ट किया।

दूसरी बार अल नीनो घटना के कारण 1791-1792 में दोजी बारा अकाल (खोपड़ी अकाल) पड़ा जिसके कारण लंबे समय तक सूखे की स्थिति बनी।

1791 को लोककथाओं में इस अकाल को दोजी बारा या “खोपड़ी अकाल” (skull famine) कहते हैं।

कहावत है कि इस अकाल में “पीड़ितों की हड्डियां सड़कों और खेतों को सफेद करती थीं।”

1789 से शुरू होकर लगातार चार वर्षों तक मानसून विफल रहा।

यह अकाल हैदराबाद, दक्षिणी मराठा साम्राज्य, दक्कन, गुजरात और मारवाड़ में व्यापक मृत्यु दर का कारण बना।

एक अध्ययन के अनुसार, इन दोनों अकालों (famines) में कुल 11 मिलियन से अधिक लोगों की मृत्यु भुखमरी और बीमारी की महामारियों के कारण हुई।

3. 1876-1879 का उत्तरी चीनी अकाल (Northern Chinese Famine of 1876-1879)

किंग राजवंश के दौरान 1876-1879 के बीच उत्तरी चीन में भयंकर अकाल (Chinese famines) पड़ा।

1875 के दौरान अल नीनो-दक्षिणी दोलन से प्रभावित होकर उत्तरी चीन में सूखा (worst natural disasters) शुरू हुआ।

जिसके परिणामस्वरूप बाद के वर्षों में फसलें खराब होती गयीं।

इस अकाल (famine) से शांक्सी, झिली (अब हेबै का हिस्सा), हेनान, शेडोंग और जिआंगसू के उत्तरी हिस्से प्रभावित हुए थे।

अकाल की भयावह स्थिति का वर्णन ब्रिटिश मिशनरी टिमोथी रिचर्ड ने 1876 में अपने लेख में किया था।

Worst famines in history

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Northern Chinese Famine of 1876-1879

“लोग अपने घरों, पत्नियों और बेटियों को बेचते हैं, सड़ी हुई जड़ और पत्ते खाते हैं और इस बात से किसी को आश्चर्य नहीं होता है। सड़क के किनारे लाचार पड़े पुरुषों और महिलाओं को कुत्ते और पक्षी खा रहे हैं। बच्चों को उबालकर खा लिया जाता है, यह इतना भयानक है कि एक कंपकंपी पैदा करता है।”

अकाल (famine) से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क स्थापित किया गया था।

इंग्लैंड और चीन के कारोबारियों और रोमन कैथोलिक ने चंदा जमा किया।

किंग सरकार और चीनी व्यापारियों ने भी अकाल के लिए धन जुटाया।

विदेशी और चीनी राहत प्रयासों के बीच प्रतिद्वंद्विता थी।

किंग राजवंश को डर था कि मिशनरी लोग अपने काम का उपयोग ईसाई धर्म का प्रचार और पीड़ित लोगों को ईसाई बनाने के लिए करेंगे।

जून 1879 में अकालग्रस्त क्षेत्रों में भारी बारिश शुरू हो गई और शरद ऋतु की फसल के साथ अकाल (biggest natural disasters) का सबसे बुरा समय समाप्त हो गया।

लेकिन इस अकाल (famine) ने लगभग 13 मिलियन से अधिक लोगों को मौत के मुँह में धकेल दिया।

2. 1907 का चीनी अकाल (Chinese Famine of 1907)

इतिहास (famine in the world) के दूसरे सबसे भीषण 1907 के चीनी अकाल (famine in history) में अनुमानित 2.5 मिलियन से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी।

1906 की भारी वर्षा के कारण उत्तरी चीन में यह भयंकर अकाल (biggest famines in the world) पड़ा।

बारिश लगातार 3 महीने तक होती रही और बाढ़ की स्थिति बन गई।

बाढ़ की स्थिति तब और खराब हो गई जब 1907 में गंभीर अकाल (famine) के साथ परिणाम सामने आए।

बाढ़ और बारिश के कारण खेती नहीं हो पायी जिससे खाद्यान्न उत्पादन में भारी कमी आई।

इसके कारण अगले वर्ष भोजन की कमी हो गयी और आबादी भूख से मरने लगी।

china famines
Chinese Famine of 1907

इस अकाल (famine) के प्रतिकूल प्रभाव के रूप में, किंग राजवंश के शासकों को संकट की स्थिति का सामना करना पड़ा।

शासकों ने उत्तरी जिआंगसू क्षेत्र के आसपास बाढ़ राहत के लिए अधिकारियों को नियुक्त किया।

गैर-सरकारी और विदेशी दोनों को आपदा राहत के लिए अनुमति दी गई थी।

बाढ़ और उसके बाद के अकाल (worst famine in history) से लाखों लोग मारे गए।

लेकिन मौतों की उच्च संख्या का एक अन्य संभावित कारण हिंसा और दंगे भी थे।

विरोध और हिंसा का प्रकोप बड़े पैमाने पर था क्योंकि लोगों को खाना नहीं मिल रहा था, रहने के लिए घर नहीं थे और वे गंभीर स्थिति में थे।

अकाल (famine) से प्रभावित क्षेत्रों में नरभक्षण की घटनाऐं होने लगीं।

परिवार अक्सर अपने बच्चे को पड़ोसियों के बच्चों से बदल लेते थे ताकि वे अपने बच्चों को मारने और खाने से बच जायें।

मार्च के महीने में दंगे शुरू हुए और जून तक जारी रहे, जब तक की सेना को इसे दबाने के लिए नहीं भेजा गया।

खाद्य उत्पादन को उबरने में कई साल लगे और इस अकाल (famine) के प्रभाव के कारण शिन्हाई क्रांति ने किंग राजवंश को उखाड़ दिया।

1. 1958-1961 का भीषण चीनी अकाल (Great Chinese Famine of 1958-1961)

इतिहास (famines in history) में 1959-1961 का चीनी अकाल (china famines) सबसे भीषण अकाल था।

इस भीषण घातक चीनी अकाल (biggest famine in history) को इतिहास की सबसे बड़ी मानव निर्मित आपदा माना जाता है।

अकाल में प्रमुख योगदान कारक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियां थीं।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष माओत्से तुंग ने कृषि नीति में बड़े बदलाव किये।

(mao’s great famine)

mao's great famine
Great Chinese Famine of 1958-1961

यह नीति कृषि स्वामित्व को प्रतिबंधित करती थी और नीतियों का पालन ना करने पर सजा होती थी।

कृषि को लेकर किये गए नीतिगत परिवर्तन के कारण साल-दर-साल अनाज उत्पादन गिरने लगा।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने खेतों की रक्षा के लिए फसल के बीज खाने वाले गौरैया और अन्य जंगली पक्षियों को नष्ट करने का आदेश दिया।

पक्षियों के बड़े पैमाने पर उन्मूलन के परिणामस्वरूप फसल खाने वाले कीड़ों की आबादी का विस्फोट हुआ।

आर्थिक उन्नति के लिए लाखों किसानों को कृषि कार्य से दूर कर लौह और इस्पात उत्पादन में शामिल होने का आदेश दिया गया।

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अकाल (famine) से बचने के लिए कुल कृषि उत्पादन पर्याप्त था लेकिन अकाल (biggest disaster in the world) देश के भीतर अधिक खरीद और खराब वितरण के कारण हुआ था।

इसके अलावा 1958 में आयी येलो रिवर की बाढ़ ने हेनान और शेडोंग प्रांत के लोगों को प्रभावित किया।

भोजन की कमी के कारण विभिन्न प्रांतों में लाखों लोग मरने लगे।

सड़क किनारे सैकड़ों लोग गड्ढों में मरे पड़े सड़ते रहते थे।

उनको खाने के लिए कुत्ते भी नहीं थे क्योंकि लोग उनको पहले ही खा चुके थे।

अकाल के परिणामस्वरूप मानव नरभक्षण के मौखिक और कुछ आधिकारिक दस्तावेज भी मिलते हैं।

इतिहास के इस सबसे भयानक अकाल (worst famine in history) में भुखमरी के कारण 55 मिलियन से अधिक लोग मारे गए थे।

One comment

  1. interesting information gathered from here
    never knew that China has suffered severe famine only some years back
    and has revived from the same and become a world power

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