Top 10 Most Controversial Books of All Time

Controversial Books (विवादास्पद किताबों) को मापना एक कठिन काम है। अक्सर ऐसा देखा गया है कि कई किताबों को प्रतिबंधित कर दिया जाता है। इसके कारण कुछ भी हो सकते हैं – जैसे विषय को अनुपयुक्त मानना या लेखक के दृष्टिकोण से असहमति। कई बार विभिन्न स्कूल और धार्मिक संगठन भी जादू और रहस्य से भरी बच्चों की किताबों का विरोध करते हैं। हालांकि, अधिकांश लोगों को वह विवादास्पद नहीं लगती हैं।

इसीलिए यह सूची केवल सबसे अधिक प्रतिबंधित किताबों की सूची नहीं है। यहाँ उन किताबों की चर्चा की गयी है जिन किताबों ने प्रकाशित होने के बाद लोगों में आक्रोश पैदा किया, लेखक और किताब पर अश्लीलता के आरोप लगे या लेखक के दृष्टिकोण ने लोगों की भावनाओं को झझकोरा।

कभी कभी किसी किताब को सेंसर करने से या विवादों के कारण उसकी लोकप्रियता और लोगों के मन में उसके लिए उत्सुकता बढ़ जाती है।

इस लेख में ऐसी ही विवादास्पद किताबों (most controversial books of all time) की चर्चा की गयी है।

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लोलिता (Lolita) (Controversial Books)

controversial books
Lolita by Vladimir Nabokov

उपन्यासकार व्लादिमीर नाबोकोव ने 1955 में इस विवादास्पद उपन्यास (controversial books) लोलिता को लिखा था।

यह उपन्यास अपने विवादास्पद विषय के लिए प्रसिद्ध है।

इस उपन्यास में हम्बर्ट हम्बर्ट नामक मध्यम आयु वर्ग के साहित्य के प्रोफेसर की 12 वर्षीय अमेरिकी लड़की डोलोरेस हेज़ के प्रति आसक्ति को दिखाया गया है।

उसके लिए वह उसका सौतेला पिता बनता है उसका यौन शोषण करता है।

“लोलिता” डोलोरेस के लिए उसका निजी निकनेम है।

लोलिता को कामुक उपन्यास माना जाता है।

विवादित विषय के कारण, नाबोकोव इसे छद्म नाम से प्रकाशित कराना चाहता था।

लेकिन कई प्रतिष्ठित अमेरिकी प्रकाशकों ने इसे प्रकाशित करने से मना कर दिया।

निराश होकर अंततः नाबोकोव ने लोलिता के प्रकाशन के लिए फ्रांस के ओलंपिया प्रेस के साथ अनुबंध किया।

लंदन संडे एक्सप्रेस के संपादक जॉन गॉर्डन ने इसे “मैंने अब तक पढ़ी सबसे गंदी किताब (vulgar books)” और “सरासर अनर्गल पोर्नोग्राफ़ी” कहा।

ब्रिटिश सरकार ने यूनाइटेड किंगडम में आने वाली सभी प्रतियों को जब्त करने का निर्देश दिया।

फ्रांस ने इसका अनुसरण करते हुए लोलिता पर प्रतिबंध लगा दिया; यह प्रतिबंध दो साल तक चला।

इस विवादास्पद उपन्यास (most controversial books) के कारण इसके ब्रिटिश प्रकाशक के पार्टनर संसद सदस्य निगेल निकोलसन के राजनीतिक करियर का अंत हो गया।

लेकिन विवाद और नकारात्मक समीक्षा इस पुस्तक (controversial books) की बिक्री को प्रभावित करने में विफल रही।

इस विवादास्पद उपन्यास पर 1962 में स्टेनली कुब्रिक और 1997 में एड्रियन लिन ने फिल्म बनाई।

लोलिता सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों की कई सूचियों में शामिल है।

जैसे टाइम की 100 सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों की सूची, ले मोंडे की शताब्दी की 100 पुस्तकें, बोक्क्लबबेन वर्ल्ड लाइब्रेरी, मॉडर्न लाइब्रेरी के 100 सर्वश्रेष्ठ उपन्यास और द बिग रीड।

द सैटेनिक वर्सेज (The Satanic Verses)

controversial authors
The Satanic Verses by Salman Rushdie

ब्रिटिश-भारतीय लेखक सलमान रुश्दी द्वारा लिखित और इस्लामिक पैगंबर मुहम्मद के जीवन से प्रेरित उपन्यास (controversial books) द सैटेनिक वर्सेज का प्रकाशन 26 सितंबर, 1988 को किया गया था।

प्रकाशित होते ही यह सबसे विवादास्पद पुस्तकों (most controversial books) में से एक बन गई।

इस उपन्यास का शीर्षक कुरान की शैतानी आयतों को संदर्भित करता है।

जिसमें तीन मूर्तिपूजक मक्का की देवियों अल्लात, उज्जा और मनात का संदर्भ है।

इस उपन्यास का हिस्सा जो “शैतानी आयतों” से संबंधित है, इस्लामिक इतिहासकारों अल-वकीदी और अल-तबारी के लेखों पर आधारित था।

सलमान रुश्दी  द्वारा इस्लाम के काल्पनिक और व्यंग्यपूर्ण उपयोग को कई मुसलमानों ने ईशनिंदा के रूप में देखा।

मुसलमानों के आक्रोश के परिणामस्वरूप 14 फरवरी 1989 को ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी ने रुश्दी की मौत का फतवा दे दिया।

मुसलमानों को न केवल रुश्दी बल्कि उसके संपादकों और प्रकाशकों को भी मारने का आदेश दिया गया।

रुश्दी की हत्या के कई असफल प्रयास हुए और उन्हें यूके सरकार ने सुरक्षा प्रदान की।

उनसे जुड़े कई अन्य व्यक्तियों पर भी हमले हुए, जिसमें अनुवादक हितोशी इगारशी की मौत हो गयी।

पाकिस्तान में हिंसक प्रदर्शन हुए।

ब्रिटेन सहित कई अन्य देशों में इसकी प्रतियां जलाई गयीं और किताबों की दुकानों पर बमबारी की गई।

इस पुस्तक (controversial books) को भारत सहित कई अन्य देशों में मुसलमानों के प्रति अभद्र भाषा (offensive literature) मानते हुए प्रतिबंधित कर दिया गया था।

पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने का जवाब देते हुए रुश्दी ने कहा कि “पुस्तक वास्तव में इस्लाम के बारे में नहीं है।”

इस विवादास्पद उपन्यास (controversial novels) के लिए रुश्दी को व्हिटब्रेड बुक अवार्ड मिला, और इसे बुकर पुरस्कार के लिए भी सूचीबद्ध किया गया था।

प्रभावशाली आलोचक हेरोल्ड ब्लूम ने द सैटेनिक वर्सेज को “रश्दी की सबसे बड़ी सौंदर्यात्मक उपलब्धि” नाम दिया।

सलमान रुश्दी की वेबसाइट – https://www.salmanrushdie.com/the-satanic-verses/

द चॉकलेट वॉर (The Chocolate War)

the most controversial books
The Chocolate War by Robert Cormier

1974 में अमेरिकी लेखक रॉबर्ट कॉर्मियर का एक वयस्क उपन्यास द चॉकलेट वॉर प्रकाशित हुआ था।

यह विवादास्पद किताब दस सबसे प्रतिबंधित पुस्तकों (most controversial banned books) की सूची में शामिल है।

द चॉकलेट वॉर एक किशोर लड़के, जेरी रेनॉल्ट के बारे में है, जो अपने स्कूल में चॉकलेट बिक्री में शामिल न होकर स्कूल प्रबंधन की अवहेलना करता है।

इस विवादास्पद किताब (controversial books) का मूल विषय अवज्ञा और विद्रोह है।

इसकी कहानी में एक काल्पनिक कैथोलिक हाई स्कूल के एक गुप्त छात्र संगठन को दिखाया गया है।

जहाँ छात्रों को एक क्रूर भीड़ में बदलने के लिए दबाव बनाया जाता है।

उपन्यास की भाषा, गुप्त छात्र संगठन की अवधारणा, अत्यधिक हिंसा, यौन चित्रण और गालियों के कारण पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

यह विवादास्पद किताब (controversial books) अमेरिकन लाइब्रेरी एसोसिएशन की “2000-2009 में शीर्ष 100 प्रतिबंधित/चुनौतीपूर्ण पुस्तकों” की सूची में तीसरे स्थान पर है।

इस पुस्तक को समीक्षकों द्वारा खूब सराहा गया था।

कुछ समीक्षकों ने तर्क दिया कि यह अब तक के सर्वश्रेष्ठ युवा वयस्क उपन्यासों में से एक है।

हालांकि, इस पुस्तक को कई स्कूलों से यौन चित्रण, गालियों और हिंसा के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है।

द चॉकलेट वॉर को कई पुरस्कार भी मिले हैं।

जैसे – 1974 न्यूयॉर्क टाइम्स वर्ष की उल्लेखनीय पुस्तक, 1974 युवा वयस्कों के लिए ALA सर्वश्रेष्ठ पुस्तक, 1974 स्कूल लाइब्रेरी जर्नल वर्ष की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक आदि।

1988 में निर्देशक कीथ गॉर्डन ने इसी नाम से फिल्म भी बनाई थी।

लेडी चैटरलीस लवर (Lady Chatterley’s Lover) 

banned writers
Lady Chatterley’s Lover by D H Lawrence

अंग्रेज लेखक डी एच लॉरेंस के विवादास्पद उपन्यास (controversial books)लेडी चैटरलीस लवर को पहली बार 1928 में इटली में और 1929 में फ्रांस में निजी तौर पर प्रकाशित किया गया था।

इंग्लैंड में पहली बार 1932 में इसका सेंसर संस्करण प्रकाशित हुआ।

मूल संस्करण तो 1960 तक खुले तौर पर प्रकाशित नहीं हो पाया।

प्रकाशित होते ही इसके प्रकाशक पेंगुइन बुक्स पर अश्लीलता फैलाने का मुकदमा दर्ज हो गया था।

हालाँकि पेंगुइन बुक्स ने यह मुकदमा जीता और जल्दी ही इसकी तीस लाख से अधिक प्रतियां बेच दीं।

इस विवादास्पद उपन्यास (most scandalous books) की कहानी एक उच्च वर्ग की धनी महिला कॉन्स्टेंस चैटरली की है।

कॉन्स्टेंस (कोनी) चैटरली की शादी एक धनी जमींदार सर क्लिफोर्ड से हुई है।

वह कमर के नीचे लकवाग्रस्त है और अपनी किताबों और काम में लीन रहता है।

कोनी चैटरली और सर क्लिफोर्ड के बीच शारीरिक और भावनात्मक दूरियां थीं।

इसके कारण वह अपनी एस्टेट के गेमकीपर, ओलिवर मेलर्स की ओर आकर्षित होती है।

यह कोनी चैटरली के उस अहसास के बारे में है, जहाँ उसे सिर्फ मानसिक ही नहीं शारीरिक संतुष्टि भी चाहिए।

इस किताब ने मजदूर वर्ग के पुरुष और उच्च वर्ग की महिला के बीच शारीरिक संबंधों की कहानी के कारण सनसनी फैला दी।

सेक्स के विस्तृत विवरण और अंगों के अमुद्रणीय शब्दों के भरपूर उपयोग ने इस किताब को विवादित (controversial books) बना दिया।

इस किताब को अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान में भी अश्लीलता के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था।

इस विवादास्पद उपन्यास (controversial books) का उपयोग कई बार फिल्म और टेलीविजन में किया गया है।

ट्रोपिक ऑफ़ कैंसर (Tropic of Cancer)

banned
Tropic of Cancer by Henry Miller

फ़्रांसिसी लेखक हेनरी मिलर के कामुकता के लिए कुख्यात उपन्यास (Polemic books) ट्रोपिक ऑफ़ कैंसर को 1934 में फ्रांस में प्रकाशित किया गया था।

जहाँ ट्रोपिक ऑफ़ कैंसर को आलोचकों से सराहना मिली, वहीं अश्लीलता के मुकदमों के लिए कुख्याति भी।

यह हेनरी मिलर (controversial authors) का आत्मकथात्मक उपन्यास था।

मिलर ने 1930 और 1934 के बीच पेरिस में अपने “खानाबदोश जीवन” के दौरान यह किताब लिखी थी।

ट्रोपिक ऑफ़ कैंसर जीवन के उपाख्यानों, दार्शनिक और मनोरंजक उत्सवों से भरपूर है।

इस किताब में मिलर ने गरीबी के बावजूद, अपने जीवन जीने की निरंकुश नैतिक और सामाजिक परंपराओं की प्रशंसा की।

जीवन जीने के लिए वह अक्सर अपने दोस्तों पर निर्भर था।

लेखक महिला कामुकता के प्रति आकर्षित था और इस किताब में वह कई महिलाओं के साथ अपने यौन संबंधों का स्पष्टता के साथ वर्णन करता है।

1961 में, जब ग्रोव प्रेस ने अमेरिका में पुस्तक प्रकाशित की, तो उन पर 21 से अधिक राज्यों में 60 से अधिक अश्लीलता के मुकदमे दर्ज हो गए।

यह विवादास्पद उपन्यास (controversial books) 1964 तक अमेरिका में प्रतिबंधित रहा।

1964 में, यू.एस. सुप्रीम कोर्ट ने ट्रॉपिक ऑफ कैंसर पर अश्लीलता के आरोपों को ख़ारिज कर दिया।

इसी तरह इस विवादास्पद किताब (most offensive books ever written) से कनाडा में 1964 में, यूनाइटेड किंगडम ने 1960 में, ऑस्ट्रेलिया और फ़िनलैंड से 1970 में बैन हटा।

इन सभी प्रतिबंधों और निंदा के बाद भी आलोचकों ने इस किताब को बहुत सराहा।

यह विवादास्पद उपन्यास (most controversial books) सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों की कई सूचियों में शामिल किया गया है।

ट्रॉपिक ऑफ कैंसर का अमेरिकी साहित्यिक परंपरा और अमेरिकी समाज दोनों पर एक विशाल और अमिट प्रभाव पड़ा है।

1970 में इस उपन्यास (controversial books) पर निर्देशक जोसेफ स्ट्रिक ने एक फिल्म भी बनाई थी।

द कलर पर्पल (The Color Purple) (Controversial Books)

problematic books
The Color Purple by Alice Walker

1982 में अमेरिकी लेखिका एलिस वाकर के विवादास्पद उपन्यास (controversial books) द कलर पर्पल का प्रकाशन हुआ था।

इस उपन्यास के लिए उसे पुलित्जर अवार्ड और नेशनल बुक अवार्ड मिला था।

एलिस वाकर पहली अश्वेत महिला लेखिका है जिसे पुलित्जर अवार्ड मिला।

द कलर पर्पल की कहानी 14 वर्षीय सेली नामक एक शोषित और अशिक्षित अफ्रीकी अमेरिकी महिला के सशक्तिकरण के संघर्ष के बारे में है।

सेली पत्रों के माध्यम से ईश्वर को अपने जीवन के बारे में बताती है।

द कलर पर्पल सेली के मानसिक विकास और आत्म-साक्षात्कार को दर्शाता है।

कैसे वह उत्पीड़न और दुर्व्यवहार पर काबू करके स्वतंत्रता प्राप्त करती है।

यह विवादास्पद उपन्यास लैंगिक समानता को भी संबोधित करता है।

एलिस वाकर के इस उपन्यास को बहुत प्रशंसा मिली, लेकिन साथ ही भाषा और यौन सामग्री के कारण आलोचना का सामना भी करने पड़ा।

अमेरिकन लाइब्रेरी एसोसिएशन ने इसे 1990 से 1999, 2000 से 2009, और 2010 से 2019 तक के लिए शीर्ष प्रतिबंधित और चुनौतीपूर्ण पुस्तकों की सूची में रखा।

इस किताब पर प्रतिबन्ध लगाने का मुख्य कारण स्पष्ट यौन विवरण और भाषा, हिंसा और समलैंगिकता है।

इस विवादास्पद उपन्यास (The most controversial books) में हिंसक अश्वेत पुरुषों के चित्रण को लेकर भी विवाद उठा।

5 नवंबर, 2019 को बीबीसी न्यूज़ ने द कलर पर्पल को 100 सबसे प्रभावशाली उपन्यासों की सूची में शामिल किया।

1985 में इस उपन्यास (controversial books) पर इसी नाम से एक फिल्म बनाई गयी थी।

इसे स्टीवन स्पीलबर्ग द्वारा निर्देशित किया गया था और हूपी गोल्डबर्ग ने सेली का अभिनय किया था।

यह फिल्म ग्यारह अकादमी पुरस्कारों के लिए नामांकित हुई थी।

यूलिसिस (Ulysses)

vulgar books
Ulysses by James Joyce

आयरिश लेखक जेम्स जॉयस (controversial writers) के विवादास्पद उपन्यास यूलिसिस का प्रकाशन पहली बार 1922 में हुआ था।

इसे आधुनिकतावादी साहित्य की एक उत्कृष्ट कृति माना जाता है।

इस उपन्यास को होमर के ओडिसी के समानांतर आधुनिक रूप में लिखा गया है।

यूलिसिस में सभी घटनाऐं एक ही दिन (16 जून, 1904) डबलिन और उसके आसपास घटित होती हैं।

इसके तीन केंद्रीय पात्र स्टीफन डेडलस (नायक), लियोपोल्ड ब्लूम (यहूदी विज्ञापन प्रचारक) और उसकी पत्नी मौली हैं।

जो क्रमशः टेलीमेकस, यूलिसिस (ओडीसियस) और पेनेलोप के आधुनिक समकक्ष हैं।

इस उपन्यास की घटनाएं ट्रोजन युद्ध के बाद ओडीसियस की यात्रा की प्रमुख घटनाओं के समानांतर हैं।

यह विवादास्पद उपन्यास (controversial books) प्रकाशन के बाद से ही विवादों में घिर गया।

प्रकाशित होने से पहले यह सीरीज के रूप में अमेरिकी पत्रिका द लिटिल रिव्यू में छपा।

इस मैगज़ीन में नौसिका एपिसोड के छपते ही इस पर अश्लीलता के लिए मुकदमा चलाया गया।

इस एपिसोड में हस्तमैथुन करने वाले पात्रों का वर्णन था।

मुकदमे में पत्रिका को अश्लील घोषित किया गया और यूलिसिस को अमेरिका में प्रतिबंधित कर दिया गया था।

इस विवादास्पद उपन्यास (most controversial books of all time) की प्रतियों को 1918 में अमेरिका में, 1922 में आयरलैंड और कनाडा में और 1923 में इंग्लैंड में जलाना शुरू कर दिया।

1929 में इंग्लैंड ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि केवल जलाने से इसके पाठकों पर प्रभाव नहीं पड़ रहा था।

1934 में अमेरिकी न्यायाधीश जॉन एम. वूल्सी ने कहा कि पुस्तक अश्लील नहीं थी।

आयरलैंड में यह विवादित उपन्यास (controversial books) पहली बार 1960 के दशक में उपलब्ध हुआ।

यूलिसिस का उपयोग बहुत सी फिल्मों, टीवी सीरीज, थिएटर, ऑडियो और म्यूजिक में किया गया।

द कैचर इन द राई (The Catcher in the Rye)

most controversial banned books
The Catcher in the Rye by J D Salinger

1951 में अमेरिकी लेखक जेरोम डेविड सेलिंगर का विवादास्पद उपन्यास (controversial books) द कैचर इन द राई प्रकाशित हुआ था।

इस उपन्यास में 16 वर्षीय होल्डन कौलफील्ड के जीवन के उन दो दिनों का विवरण है, जब उसे स्कूल से निष्कासित कर दिया गया था।

भ्रमित और निराश, होल्डन सच्चाई की खोज करता है और वयस्क दुनिया की “धूर्तता” के खिलाफ विद्रोह करता है।

लेकिन इस प्रक्रिया में वह थक जाता हैं और भावनात्मक रूप से अस्थिर हो जाता है।

इस उपन्यास का व्यापक अनुवाद हुआ है और अब तक इसकी 65 मिलियन से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं।

“द कैचर इन द राई” का नायक होल्डन कौलफील्ड किशोर विद्रोह का प्रतीक बन गया है।

इसके साथ ही यह विवादास्पद उपन्यास (most controversial books of all time) मासूमियत, पहचान, अपनेपन, हानि, संबंध, लिंग और अवसाद के जटिल मुद्दों से भी संबंधित है।

इस उपन्यास के विवादों में रहने के कई कारण हैं।

जैसे होल्डन द्वारा अभद्र भाषा का उपयोग, यौन संदर्भ, ईशनिंदा, पारिवारिक मूल्यों को ना मानना, नैतिक आचरण की कमी, विद्रोह को प्रोत्साहित करना, मद्यपान, धूम्रपान, झूठ बोलना, संकीर्णता और यौन शोषण को बढ़ावा देना।

चूँकि यह किताब वयस्कों के लिए लिखी गयी थी, लेकिन किशोरों में प्रचलित होने के कारण इसे स्कूलों में कई बार प्रतिबंधित कर दिया गया था।

इस विवादास्पद उपन्यास के साथ कई हिंसक घटनाऐं भी जुडी हुई हैं।

रॉबर्ट जॉन बार्डो द्वारा रेबेका शेफ़र की हत्या और जॉन हिंक्ले जूनियर द्वारा रोनाल्ड रीगन की हत्या का प्रयास।

जॉन लेनॉन की हत्या के बाद जब मार्क डेविड चैपमैन को गिरफ्तार किया गया तो उसके पास भी इस किताब की प्रति थी।

मॉडर्न लाइब्रेरी और उसके पाठकों ने इसे 20वीं सदी के 100 सर्वश्रेष्ठ अंग्रेजी भाषा के उपन्यासों में से एक माना है।

सोफिज़ चॉइस (Sophie’s Choice) (Controversial Books)

polemic books
Sophie’s Choice by William Styron

अमेरिकी लेखक विलियम स्टायरन का विवादास्पद उपन्यास (controversial books) सोफिज़ चॉइस 1979 में प्रकाशित हुआ था।

यह उपन्यास ऑशविट्ज़ नाज़ी कैंप के पीड़ित एक रोमन कैथोलिक के दुखद जीवन के माध्यम से होलोकॉस्ट के ऐतिहासिक, नैतिक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों की जांच करता है।

उपन्यास की कहानी ब्रुकलिन के एक बोर्डिंग-हाउस में साथ रह रहे तीन लोगों के बारे में है।

जिसमें स्टिंगो, एक युवा महत्वाकांक्षी लेखक, यहूदी वैज्ञानिक नाथन लैंडौ, और जर्मन नाजी शिविरों की पीड़ित एक पोलिश-कैथोलिक युवती सोफी हैं, जो नाथन की प्रेमिका भी है।

इस उपन्यास में लेखक विलियम स्टायरन का होलोकॉस्ट के संबंध में अपने व्यक्तिगत विचारों को रखना विवादास्पद बना।

उपन्यास के प्रकाशन के बाद बहुत विवाद उत्पन्न हुए।

इसे दक्षिण अफ्रीका में प्रतिबंधित, सोवियत संघ में सेंसर, और कम्युनिस्ट पोलैंड में “पोलिश विरोधी यहूदीवाद के चित्रण” के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था।

दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने नवंबर 1979 में इस विवादास्पद उपन्यास (controversial books) को यौन चित्रण के लिए भी प्रतिबंधित किया था।

अमेरिका के कुछ विद्यालयों में प्रतिबंध लगाया गया क्योंकि कुछ माता-पिता ने यौन चित्रण के बारे में शिकायत की थी।

सोफीज चॉइस ने 1980 में फिक्शन के लिए यूएस नेशनल बुक अवार्ड जीता।

1982 में अमेरिका में इस विवादास्पद उपन्यास (most controversial books) पर इसी नाम की एक फिल्म बनायी गयी थी।

एलन जे. पाकुला द्वारा लिखित और निर्देशित यह फिल्म अकादमी पुरस्कार के लिए कई श्रेणियों में नामांकित हुई।

मेरिल स्ट्रीप को शीर्ष भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अकादमी पुरस्कार मिला।

1984 (1984 – Nineteen Eighty Four)

offensive literature
1984 by George Orwell

अंग्रेज लेखक जॉर्ज ऑरवेल द्वारा लिखित और 8 जून 1949 को प्रकाशित 1984 (Nineteen Eighty-Four), अधिनायकवाद (totalitarianism) के खिलाफ चेतावनी थी।

इस विवादास्पद उपन्यास ने पाठकों पर गहरी छाप छोड़ी, और इसके विचारों ने मुख्यधारा की संस्कृति में इस तरह प्रवेश किया, जैसा बहुत कम पुस्तकों ने किया था।

विषयगत रूप से, यह उपन्यास अधिनायकवाद, जन निगरानी और दमनकारी शासन के परिणामों पर केंद्रित है।

इसकी कहानी एक कल्पित भविष्य, वर्ष 1984 की है, जब दुनिया का अधिकांश हिस्सा युद्ध, सर्वव्यापी निगरानी, ​​​​निषेधवाद और प्रचार का शिकार हो गया था।

ब्रिटेन को अब एयरस्ट्रिप वन के नाम से जाना जाता है, और यह सुपरस्टेट ओशिनिया का एक प्रांत बन गया है।

जहाँ व्यक्तित्व और स्वतंत्र सोच को सताने के लिए थॉट पुलिस को नियुक्त किया जाता है।

ओशिनिया के तानाशाह नेता बिग ब्रदर, पार्टी की ब्रेनवॉशिंग तकनीकों से शासन चलाता है।

जब 1984 को पहली बार प्रकाशित किया गया तो उसे आलोचकों की प्रशंसा मिली।

लेखक जॉर्ज ऑरवेल ने नाज़ीवाद और स्टालिनवाद के खतरों पर वर्षों तक चिंतन करने के बाद, 1984 को एक चेतावनी के रूप में लिखा।

वी एस प्रिटचेट ने न्यू स्टेट्समैन के लिए उपन्यास की समीक्षा करते हुए कहा: “मुझे नहीं लगता कि मैंने कभी भी इतना भयावह और निराशाजनक उपन्यास पढ़ा है; इसकी मौलिकता, रहस्य, लेखन की गति और क्रोध को कम करना असंभव है और सबसे असंभव है किताब को नीचे रखना।”

1984 का 65 भाषाओं में अनुवाद हुआ, जो उस समय के अंग्रेजी के किसी भी अन्य उपन्यास से अधिक था।

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